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भारत डिफेन्स टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक और बड़ा कदम बढ़ा रहा है। डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की प्रमुख प्रयोगशाला, गैस टरबाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE), बेंगलुरु के पास राजनकुंटे में अपनी अत्याधुनिक 130 kN ट्विन इंजन टेस्ट बेड फैसिलिटी का निर्माण लगभग पूरा कर चुकी है। यह भारत के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
सितंबर 2023 में शुरू हुई इस फैसिलिटी का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है और उम्मीद है कि अगले छह से आठ महीनों में इंटीरियर का काम पूरा हो जाएगा। अक्टूबर 2025 तक यह फैसिलिटी पूरी तरह से काम करने लगेगी।
यह उन्नत टेस्टिंग सेंटर भारत के स्वदेशी जेट इंजनों के विकास और परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिसमें कावेरी डेरिवेटिव इंजन (KDE) और भविष्य के लड़ाकू विमान एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) के लिए बनने वाला शक्तिशाली इंजन शामिल है।
क्या है इस फैसिलिटी की खासियत?
राजनकुंटे में बन रही यह फैसिलिटी भारत के स्वदेशी डिफेन्स उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में एक मील का पत्थर है। इसकी क्षमता 130 kN तक के थ्रस्ट (धक्का देने की शक्ति) वाले इंजनों का परीक्षण करने की है।हाल ही में मिली सैटेलाइट तस्वीरों में इसका ट्विन टेस्ट सेल कॉन्फ़िगरेशन साफ दिखाई देता है, जिसका मतलब है कि यहाँ एक साथ दो इंजनों पर परीक्षण किया जा सकता है।
इस फैसिलिटी में लड़ाकू विमानों के इंजनों की ताकत, सहनशक्ति और परफॉरमेंस को जांचने के लिए कठोर परीक्षण किए जाएँगे। सूत्रों के अनुसार, इस फैसिलिटी में पहला इंजन टेस्ट आज से लगभग एक साल के भीतर, यानी 2026 के मध्य तक होने की उम्मीद है। यह भारत के एयरो-इंजन विकास के सफर में एक ऐतिहासिक क्षण होगा।
विदेशी निर्भरता होगी कम
अभी तक भारत अपने लड़ाकू विमानों के इंजनों के लिए काफी हद तक दूसरे देशों पर निर्भर रहा है। यह नई टेस्ट फैसिलिटी इस विदेशी निर्भरता को कम करने में मदद करेगी।अपने ही देश में परीक्षण की सुविधा होने से इंजन के विकास और सर्टिफिकेशन में लगने वाला समय और पैसा दोनों बचेगा।
यह न केवल सैन्य उपयोग बल्कि भविष्य में कमर्शियल इंजनों के परीक्षण का मार्ग भी खोल सकता है, जिससे प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों के साथ सहयोग के नए अवसर पैदा होंगे।
'घातक' ड्रोन को मिलेगी कावेरी की शक्ति
इस फैसिलिटी का सबसे पहला फायदा कावेरी डेरिवेटिव इंजन (KDE) को मिलेगा। यह इंजन बिना आफ्टरबर्नर वाला वैरिएंट है, जो लगभग 46 से 52 kN का ड्राई थ्रस्ट पैदा करता है।इसे खासतौर पर भारत के स्टेल्थ लड़ाकू ड्रोन 'घातक' (UCAV) के लिए डिज़ाइन किया गया है। घातक ड्रोन एक बेहद आधुनिक मानवरहित विमान है जो सटीक हमले करने, दुश्मन पर निगरानी रखने (इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस) और हवा से हवा में मुकाबला करने में सक्षम होगा।
कावेरी इंजन के ग्राउंड टेस्ट और रूस में ऊंचाई वाले परीक्षण पहले ही सफल रहे हैं, जहाँ इसने 49-51 kN का स्थिर थ्रस्ट दिया है। अब राजनकुंटे फैसिलिटी में इसकी विश्वसनीयता को वास्तविक परिस्थितियों में परखा जाएगा।
इसके साथ ही, 2025 के अंत में रूस में एक IL-76 विमान पर इसकी उड़ान का परीक्षण भी किया जाएगा, ताकि 2026 तक इंजन को सर्टिफिकेशन मिल सके।
तेजस और AMCA का भविष्य भी होगा उज्जवल
GTRE सिर्फ यहीं नहीं रुक रहा। वैज्ञानिक कावेरी इंजन में एक नया आफ्टरबर्नर मॉड्यूल जोड़कर इसे कावेरी 2.0 में अपग्रेड करने पर भी काम कर रहे हैं। इससे इंजन की ताकत (वेट थ्रस्ट) बढ़कर 80-85 kN हो जाएगी, जिसके बाद इसे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस Mk1A जैसे लड़ाकू विमानों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।इसके अलावा, भारत के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट, पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान AMCA के लिए 120 kN के शक्तिशाली इंजन का विकास भी इसी फैसिलिटी पर निर्भर करेगा। GTRE के निदेशक डॉ. एस.वी. रमनमूर्ति ने इस लक्ष्य की पुष्टि की है।
यह फैसिलिटी AMCA इंजन की स्टेल्थ क्षमता (दुश्मन के राडार से छिपने की कला), फ्यूल एफिशिएंसी और थ्रस्ट-वेक्टरिंग (विमान को किसी भी दिशा में तेजी से मोड़ने की तकनीक) जैसी जटिल क्षमताओं के परीक्षण के लिए महत्वपूर्ण होगी।
उम्मीद है कि इस इंजन का कोर 2029 तक और पूरा टेक्नोलॉजिकल डेमोंस्ट्रेटर 2030 के दशक की शुरुआत तक तैयार हो जाएगा।