भारत बना रहा 20 से 100 टन की विशालकाय मानवरहित पनडुब्बियां, हिंद महासागर में चीन को देंगी सीधी टक्कर

भारत बना रहा 20 से 100 टन की विशालकाय मानवरहित पनडुब्बियां, हिंद महासागर में चीन को देंगी सीधी टक्कर


हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी का मुकाबला करने के लिए भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा को एक नए स्तर पर ले जाने की तैयारी कर ली है।

भारतीय नौसेना अब 20 टन से लेकर 100 टन तक की विशालकाय मानवरहित पनडुब्बियों (सबमरीन) का एक बड़ा बेड़ा तैयार कर रही है।

ये आधुनिक पनडुब्बियां बिना किसी इंसान के पानी के नीचे महीनों तक खुफिया निगरानी और सैन्य अभियानों को अंजाम दे सकती हैं।

'जलकापी' के साथ आत्मनिर्भर भारत की बड़ी छलांग​

इस बड़ी योजना की शुरुआत 10 जून, 2025 को गुजरात के हलोल में हुई, जब कृष्णा डिफेन्स एंड एलाइड इंडस्ट्रीज (KDAIL) ने भारत के सबसे बड़े और सबसे आधुनिक ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल (AUV) 'जलकापी' का निर्माण शुरू किया।

इस ऐतिहासिक मौके पर भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे, जो 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के तहत डिफेन्स टेक्नोलॉजी में भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।

लेकिन 'जलकापी' तो बस एक शुरुआत है, क्योंकि डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) इससे भी बड़ी, 100 टन की पनडुब्बी बनाने की योजना पर काम कर रहा है, जो पानी के नीचे भारत की ताकत को कई गुना बढ़ा देगी।

'जलकापी' की ताकत और खासियतें​

'जलकापी' एक एक्स्ट्रा-लार्ज अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल (XLUUV) है, जिसे भारतीय नौसेना के अपने डिज़ाइन ग्रुप ने तैयार किया है। यह 20 टन वजनी और 11 मीटर लंबी है। इसकी बनावट ऐसी है कि यह दुश्मन के सोनार से आसानी से बच सकती है और पानी में तेजी से चल सकती है।

'जलकापी' 300 मीटर की गहराई तक गोता लगा सकती है और एक बार पानी में उतरने के बाद 30 से 45 दिनों तक बिना किसी बाहरी मदद के अपना मिशन पूरा कर सकती है। यह अमेरिका के 'ओर्का एक्सएलयूयूवी' जैसे दुनिया के सबसे आधुनिक मानवरहित वाहनों को टक्कर देती है।

इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल इन्फ्रारेड कैमरे, पैसिव सोनार और समुद्र के तापमान और गहराई को मापने वाले सीटीडी सेंसर्स लगे हैं, जो इसे खुफिया जानकारी जुटाने, दुश्मन की पनडुब्बियों पर नज़र रखने और समुद्री सुरंगों का पता लगाने जैसे कामों के लिए बेहतरीन बनाते हैं।

DRDO का विशाल लक्ष्य: 100 टन की 'महा-पनडुब्बी'​

'जलकापी' की सफलता के बीच, DRDO ने एक और भी महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। यह प्रोजेक्ट है 100 टन की एक विशालकाय मानवरहित पनडुब्बी बनाने का, जिसके लिए 2024 में 2,500 करोड़ रुपये का बजट पास किया गया था।

यह पनडुब्बी 16 मीटर लंबी होगी और इसमें 10 टन तक के हथियार या उपकरण ले जाने की क्षमता होगी। अनुमान है कि इसमें 533 मिमी की दो टॉरपीडो ट्यूब और समुद्री बारूदी सुरंगें बिछाने की प्रणाली भी लगाई जा सकती है।

यह आकार में न सिर्फ 'जलकापी' से बहुत बड़ी होगी, बल्कि अमेरिका के 'ओर्का' और रूस के 'सरमा-डी' जैसे दुनिया के सबसे बड़े मानवरहित वाहनों को चुनौती देगी।

इसकी ताकत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह 45 दिनों से ज़्यादा समय तक पानी के नीचे रह सकती है और इसे चलाने के लिए लीथियम-आयन बैटरी या एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा। यह सिस्टम भारतीय नौसेना की स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों में भी इस्तेमाल होता है।

क्यों ज़रूरी हैं ये मानवरहित पनडुब्बियां?​

हिंद महासागर में चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। चीन अपनी पनडुब्बियों और मानवरहित ड्रोन्स के ज़रिए इस क्षेत्र में दबदबा बनाने की कोशिश कर रहा है। 2021 में इंडोनेशिया के पास चीन का एक अंडरवाटर ड्रोन मिला था, जिसने भारत की चिंताएं बढ़ा दी थीं।

भारतीय नौसेना के पास वर्तमान में लगभग 13 ऑपरेशनल पनडुब्बियां हैं, जबकि ज़रूरत 2030 तक 24 पनडुब्बियों की है। प्रोजेक्ट-75I जैसी परियोजनाओं में हो रही देरी के कारण इस कमी को पूरा करने में समय लग रहा है।

ऐसे में 'जलकापी' और 100 टन की XLUUV पनडुब्बियां इस कमी को पूरा करने में मदद करेंगी। ये मानवरहित होने के कारण खतरनाक मिशनों को बिना किसी सैनिक की जान जोखिम में डाले पूरा कर सकती हैं। ये चीन की पनडुब्बियों की हर हरकत पर नज़र रखेंगी और समुद्री व्यापार मार्गों को सुरक्षित करेंगी।

भविष्य की योजना और रक्षा निर्यात​

भारतीय नौसेना ने अपने "इंटीग्रेटेड अनमैन्ड रोडमैप 2021-2030" में ऐसी मानवरहित पनडुब्बी तकनीकों पर ज़ोर दिया है। प्रोटोटाइप के सफल परीक्षण के बाद नौसेना ऐसी 12 विशालकाय XLUUV खरीदने की योजना बना रही है।

इस प्रोजेक्ट का विकास 2027 तक पूरा होने की उम्मीद है, जिसमें मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (MDL) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां हिस्सा लेंगी।

यह न केवल भारत की समुद्री रक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि 2029 तक 6 बिलियन डॉलर के रक्षा निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद करेगा।
 

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